रविवार, 13 अक्टूबर 2019

लुप्त होने की कगार पर है पुरानी परम्पराए  पूर्णिमा पर होता हैं टेसू और झेंझी विवाह शरद पूर्णिमा पर टेसू और झेंझी विवाह की परंपरा



भिण्ड । आज आधुनिक की दौड़ में लुप्त होने की कगार पर है पुरानी परम्पराए किसी जमाने में अपने अनोखे प्रेम के लिए सुविख्यात टेसू और झेंझी विवाह परंपरा को आज की युवा पीढ़ी भूलती जा रही है। अगर हम इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो पता चलता है कि किसी समय में इस प्रेम कहानी को परवान चढ़ने से पहले ही मिटा दिया गया था। लेकिन उनके सच्चे प्रेम की उस तस्वीर की झलक आज भी यदाकदा देखने को मिल ही जाती है। शहर के लोग तो इसे लगभग पूरी तरह भूल ही चुके हैं। लेकिन गांवों में कुछ हद तक यह परंपरा अभी भी जीवित है।जहां आज भी टेसू-झेंझी का विवाह बच्चों व युवाओं द्वारा रीति-रिवाज व पूरे उत्साह के साथ कराया जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि अपनी प्राचीन परंपरा को सहेजने में गांव आज भी शहरों से कई गुना आगे हैं। अड़ता रहा टेसू, नाचती रही झेंझी : - 'टेसू गया टेसन से पानी पिया बेसन से...', 'नाच मेरी झिंझरिया...' आदि गीतों को गाकर उछलती-कूदती बच्चों की टोली आपने जरूर देखी होगी। हाथों में पुतला और तेल का दीपक लिए यह टोली घर-घर जाकर चंदे के लिए पैसे मांगती है। कोई इन्हें अपने द्वार से खाली हाथ ही लौटा देता है, तो कहीं ये गाने गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं।मकसद सिर्फ एक होता है, चंदे के पैसे इकट्ठे कर टेसू-झेंझी के विवाह को धूमधाम से करना। वहीं छोटी-छोटी बालिकाएं भी अपने मोहल्ला-पड़ोस में झेंझी रानी को नचाकर बड़े-बुजुर्गों से पैसे ले लेती हैं। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में बच्चों की ये टोलियां बहुत ही कम दिखाई देती हैं।ऐसे होता है विवाह :- टेसू-झेंझी नामक यह खेल बच्चों द्वारा नवमी से पूर्णमासी तक खेला जाता है। इससे पहले 16 दिन तक बालिकाएं गोबर से चांद-तरैयां व सांझी माता बनाकर सांझी खेलती हैं। वहीं नवमी को सुअटा की प्रतिमा बनाकर टेसू-झेंझी के विवाह की तैयारियों में लग जाती हैं। पूर्णमासी की रात को टेसू-झेंझी का विवाह पूरे उत्साह के साथ बच्चों द्वारा किया जाता है। वहीं मोहल्ले की महिलाएं व बड़े-बुजुर्ग भी इस उत्सव में भाग लेते हैं। प्रेम के प्रतीक इस विवाह में प्रेमी जोड़े के विरह को बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया जाता है। 
हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार लड़के थाली-चम्मच बजाकर टेसू की बारात निकालते हैं। वहीं लड़कियां भी शरमाती-सकुचाती झिंझिया रानी को भी विवाह मंडप में ले आती हैं। फिर शुरू होता है ढोलक की थाप पर मंगल गीतों के साथ टेसू-झेंझी का विवाह। सात फेरे पूरे भी नहीं हो पाते और लड़के टेसू का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। वहीं झेंझी भी अंत में पति वियोग में सती हो जाती है।पूरी होती है मन्नत :- घटोत्कच के पुत्र टेसू के नाक, कान व मुंह कौड़ी के बनाए जाते हैं। जिन्हें लड़कियां रोज सुबह पानी से उसे जगाने का प्रयास करती हैं। विवाह के बाद टेसू का सिर उखाड़ने के बाद लोग इन कौड़ियों को अपने पास रख लेते हैं। कहते हैं कि इन सिद्ध कौड़ियों से मन की मुरादें पूरी हो जाती हैं।


कलेक्टर हरजिंदर सिंह ने किया जिला अस्पताल निरीक्षण नर्स को किया निलबिंत,एक आशा की सेवा की समाप्त

  पन्ना से राजेश रावत की रिपोर्ट पन्ना-कलेक्टर हरजिंदर सिंह ने शनिवार को अचानक जिला अस्पताल का निरीक्षण किया।इस दौरान उन्हें अस्पताल के अंदर...