विशाल रजक
दमोह । वन्य प्रेमियों और वाइल्ड लाइफ में रुचि रखने वालों के लिए एक अच्छी खबर है कि भविष्य में उन्हें शेर चीता सहित अन्य जानवरों को देखने और वन्य पर्यटन के लिए किसी अन्य नेशनल पार्क में जाने की जरुरत नहीं होगी क्योंकि नरसिंहपुर दमोह पन्ना और सागर जिले की सीमाओं में आने वाला नौरादेही अभ्यारण्य अगले कुछ वर्षों में देश की नामी अभ्यारण्यों में शुमार हो सकता है कुछ माह पूर्व ही यहां लाए गए बाघिन राधा और बाघ किशन ने तीन नन्हे शावकों को जन्म देने के बाद यहां का महत्व बढ़ गया था वहीं अब इस क्षेत्र में भारत से विलुप्त हो चुके चीतों की बसाहट के लिए भी तैयारियां शुरू हो गई है और तैयारियों के बाद नौरादेही अभ्यारण्य में अफ्रीका के चीतों को ट्रानसलोकेट कर बसाया जा सकता है
*करीब दस साल पहले बनी थी योजना*
भारत में लुप्त हो चुके चीतों को वापस लाने की कल्पना वर्ष 2009 में की गई थी और उसके लिए योजना का खाका तैयार किया गया था लेकिन कई वन्य प्रेमियों द्वारा विदेशी जमीन के चीतों के लिए भारतीय क्षेत्र उपयुक्त ना होने का हवाला देने पर यह योजना ठंडे बस्ते में पड़ गई थी लेकिन वन्य प्राणियों से जुडी संस्थाओं वन विभाग सहित नामीबिया चीता कन्जर्वेशन द्वारा ने चीतों की सुरक्षा व रहवास के लिए भारत को बेहतर मानते हुए यहां उनके लिए उचित माहौल तैयार होने की बात कहीं जिसके बाद इस योजना को दोबारा आगे बढ़ाया गया है इन सकारात्मकता स्थितियों के बाद अब यह तय है कि करीब 60 दशक पूर्व भारत से लुप्त हो चुके चीतों को फिर देश में देखा जा सकेगा और यहां इनकी आबादी को बढ़ाकर उन्हें सुरक्षित व संरक्षित किया जाएगा ।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होते हैं संरक्षण के प्रयास :-
दरअसल लुप्त प्राय या लुप्त हो चुके वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जाते हैं और इसके लिए इस क्षेत्र से जुड़ी हुई अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन नेजर (आईयूसीएन) द्वारा ट्रांसलोकेशन यानी स्थांतरण की पहल की जाती है इसके पीछे मंश यह होती है कि कोई भी लुप्तप्राय प्राणी की आबादी एक ही स्थान पर ना रहे ताकि एकाएक किसी अनहोनी समस्या या बीमारी के चलते उनकी प्रजाती व आवादी पर खतरा न आए ऐसे में अफ्रीका में मौजूद चीतों का संरक्षण भी अन्य स्थानों पर रखकर किया जाएगा इस सोच को मूर्त रूप देने के लिए जिसके लिए भारत में नौरादेही अभ्यारण्य चुना गया है ।
चीता के लिए सबसे उपयुक्त नौरादेही :-
वर्तमान में नौरादेही अभ्यारण्य देश में चीता प्रजाति के लिए उपयुक्त स्थान माना जा चुका है और अभ्यारण्य प्रबंधन भी इसे और बेहतर करने में प्रयासरत है मुख्यतः खुले जंगलों में घास के मैदानों में रहने वाला वन्य प्राणी चीता के रहवास के लिए यहां कुल 1200 वर्ग किलोमीटर में फैले जंगलों में से करीब600 वर्ग किलोमीटर का मैदानी जंगल है जो मानवीय आवादी से भी दूर है इसके अलावा यहां घास भी पर्याप्त मात्रा में है जो इसे चीता के लिए उपयुक्त बनाता है इसके अलावा बाघों के बड़े कुनबे ने भी यहां चीता के लिए हालात बेहतर बना दिए हैं वहीं वन अमला यहां चीतल की बसाहट भी ज्यादा से ज्यादा कर रहा है ताकि इन जानवरों को भोजन की भी कोई कमी न हो इन सभी स्थितियों को देखते हुए वर्तमान में नौरादेही अभ्यारण्य देश में चीतों की बसाहट के लिए सबसे बेहतर हो गया है ।
चीता के लिए विस्थापित गांव में तैयार किया गया था जंगल :-
करीब एक वर्ष पूर्व नौरादेही में चीता लाने की तैयारियां बड़े जोरों शोरों से चल रही थी चीता के लिए सबसे जरुरी होता है घास का मैदान उसके लिए ऐसा जंगल तैयार किया गया था जहां सबसे अधिक घास मौजूद थी नौरादेही अभ्यारण्य में कई गांव का विस्थापन किया गया है और उन्ही गांव में चीता के रहने के लिए घास का मैदान तैयार किया गया जो आज भी उसी तरह बिल्कुल तैयार है ।
बड़ा हिस्सा हो सकता है टाइगर रिजर्व घोषित :-
जानकारी अनुसार पन्ना टाइगर रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा केन बेतवा प्रोजेक्ट के अंदर के अंतर्गत डूब क्षेत्र में आ रहा है जिसके चलते जल्द ही पन्ना से लेकर नौरादेही अभ्यारण्य तक के एक बड़े हिस्से को नया टाइगर या चीता रिजर्व घोषित किया जा सकता है यदि ऐसा होता है तो नौरादेही अभयारण्य देश का सबको बड़ा टाइगर रिजर्व और साथ ही साथ सबसे बड़े नेशनल पार्क के अभ्यारण्य के रूप में भी दर्ज हो सकता है ।
फैक्ट्स एंड फिगर :-
देश में अंतिम ऐशियाई चीता वर्ष 1947 में छत्तीसगढ़ में देखा गया था जिसे ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारियों द्वारा शिकार कर लिया गया था
वर्ष1952 में इसे देश में विलुप्त घोषित कर दिया था
दुनिया में भी चीते लुप्तप्राय जानवरों में शामिल हैं और अफ्रीका सहित ईरान में यह गिनी चुनी संख्या में पाए जाते हैं
चीता एसीनोनिक्स प्रजाति अंतर्गत रहने वाला एक मात्र जीवित सदस्य हैं
चीता दुनिया के सबसे तेज गति से दौड़ने वाले प्राणियों में जाना जाता है ।
करीब 20 चीते प्रारंभिक चरण में यहां ट्रांसलोकेट किए जाएंगे :-
वाईल्ड लाइफ इन्स्टीट्यूट देहरादून ने चीता रीइन्ट्रोड्यूस प्रोजेक्ट के तहत 260 करोड़ का बजट 6 वर्ष पूर्व प्रस्तावित किया था
*इस कारण हुए भारत से विलुप्त*
कभी चीतों को जंगली क्षेत्र में सामान्य रूप से देख जाने वाले भारत में इनके विलुप्त होने के कई कारण है जिसमें कम होता जंगली क्षेत्र जंगली क्षैत्रों में मानव आवादी का ज्यादा से ज्यादा दखल लगातार किए गए शिकार इसके अलावा मौसम में आया परिवर्तन भी इसके लिए जिम्मेदार है लेकिन आशा जताई जा रही है कि पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए अब इस विलुप्त हो चुकी प्रजाती का संरक्षण वेहतर ढंग से किया जाएगा ।
एनटीसीए और चीता प्रोजेक्ट से मिलेगी मदद :-
नौरादेही अभ्यारण्य में चीता बसाहट के लिए नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए)के साथ चीता प्रोजेक्ट की भी मदद मिल रही है नौरादेही अभ्यारण्य के लिए विस्थापित लोगों को चीता प्रोजेक्ट के तहत भी पैसा दिया जा रहा है इसके अलावा नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी भी अभ्यारण्य को विकसित बनाने के लिए हर संभव मदद कर रही है इसके अलावा वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी इस क्षेत्र में अपने कार्य पन्ना लैंड स्केप प्रोजेक्ट के अंतर्गत कर रहा है ।
जबलपुर मार्ग से लाने की बनाई गई है योजना :-
करीब एक वर्ष पूर्व जब नौरादेही में चीता लाना बिल्कुल तय हो गया था उस दौरान अधिकारियों ने बताया था कि उसे हवाई मार्ग द्वारा सबसे पहले जबलपुर लाया जाएगा और वहां से जबलपुर सड़क मार्ग से पाटन होते हुए नौरादेही अभ्यारण्य में शिफ्ट किया जाएगा यदि उस समय चीता यहां आ गया होता तो पूरे भारत में नौरादेही एकमात्र ऐसा जंगल होता जहां चीता देखने मिलता ।
पर्यटन को भी देगें बढ़ावा :-
अभी तक नौरादेही अभ्यारण्य प्रबंधन अभ्यारण्य को सभी जंगली जानवरों को उपयुक्त बनाने के साथ वन क्षेत्र को संरक्षित करने पर अपना ध्यान दे रहा था परंतु चीता बसाहट प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद अभ्यारण्य प्रबंधन यहां दूरिज्म के लिए भी बढ़ावा देने की योजना बनाएगा और संभवतः इस वर्ष के मैनेजमेंट प्लान में टूरिज्म से जुडी बातों को शामिल भी किया जाए दरअसल अन्य नेशनल पार्कों की तरह अभी यहां टूरिस्ट के लिए भ्रमण मार्ग गाइड सहित विपरीत परिस्थितियों में रेस्क्यू प्लान जैसी सुविधाएं नहीं है इन सभी बातों को मूर्त रूप देने के बाद यहां पर पर्यटन की संभावनाओं की तलाशते हुए आने वाले पर्यटकों के लिए सुविधाएं के लिए तैयार की जाएंगी ।
:- इनका कहना -:
चीता की बसाहट के लिए लंबे समय से तैयारियां की जा रही थी और वर्तमान में देश में चीता बसाहट के लिए नौरादेही अभ्यारण्य इसके लिए सबसे उपयुक्त हो चुका है लेकिन पूरी प्रक्रिया दिल्ली से होना है वहां से हरी झंडी मिलते ही चीता यहां शिप्त किया जाएगा अफ्रीकन चीतों की बसाहट यहां होगी जो क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी ।
नवीन गर्ग डीएफओ नौरादेही वन्य अभ्यारण्य सागर मध्यप्रदेश
चीता को नौरादेही लाने की मंजूरी मिल चुकी है और यहां 6 चीता लाने की योजना है उनके रहने के लिए विस्थापित गांव में घास का मैदान भी तैयार किया गया है उसके भोजन के लिए यहां 272 चीतल को भी लाया गया है
:- ओपी श्रीवास्तव रेंजर सिंगपुर रेंज सागर मध्यप्रदेश