शनिवार, 2 नवंबर 2019

आंगनवाड़ी में अंडा: गुड़ खाए और गुलगुलो से परहेज 



रतलाम। शहर में जितनी भीड़ दाल-बाटी वालों के यहां नही होती उससे कही ज्यादा भीड़ तैयार चिकन, लेंगपीस, फीस फ्राय, बीरियानी आदि और अंडों से बने पकवानों की होटल पर होती है। मटन के भाव बढ़ाने वालों में भी हमारा ही हाथ है और हम दोष किन्ही और को दे रहे हैं। 
स्टेडियम के पीछे और अंजता टाकीज रोड़ पर हर दिन शाम 6 बजे से लेकर रात 10 बजे तक मटन और अंडा प्रेमियों का मेला लगता है जो देखते ही बनता हैं। अब तो जमेटो सहित अन्य एजेंसियों ने घर पहुच सेवा शुरु कर दी तो समाज से छुप कर मटन, अंडो का सेवन करने वालों की पौबारह हो गई हैं। मटन की होटल चलाने वाले एक मिञ से कुछ देर पहले चर्चा की तो उसने बताया कि अकेले रतलाम शहर में ही हर दिन 50 से 75 हजार और इससे ज्यादा का व्यापार होता है। इस जानकारी के साथ ही उसने मुझ पर तंज कसते हुए यह भी बता दिया कि हमारे ग्राहकों में 75% ग्राहक आपके वाले होते है ! ऊपर इतनी लम्बी चौड़ी जानकारी इसलिए लिखना पड़ी क्यूकि कुपोषण की रोकथाम के लिए आंगनवाड़ी केन्द्रों पर अंडो का वितरण होने वाला है और उसका विरोध शुरू हो चुका है। आज एक सांध्य दैनिक में एक नेताजी का बयान छपा है जिसमें वो दलील दे रहे है कि- अगर बच्चे अंडे खाएगे तो वो नरभक्षी बन जाएगे! ये नेताजी उस दल के है जिनके दल के एक पूर्व मुख्यमंञी का वीडियों इन वायरल हो रहा है जिसमें वो इंसानी गोस्त को चाट रहे हैं। हनी ट्रेप मामला प्रकरण अंडों का विरोध करने वाले दल के नेताओं की हर दिन पोल खोलकर बता रहा है कि इंसानी गोस्त के शौकीन संस्कृति के कितने रक्षक है? 
किसी योजना को समझने- बुझने से पहले ही विरोध शुरु कर दो। अब तक मिली जानकारी के अनुसार आंगनवाड़ी केन्द्रो पर अंडा उन्हे दिया जाएगा जो कुपोषण से ग्रसित है और स्वस्थ्य बच्चों को वो ही सात्विक नाश्ता और भोजन मिलेगा जो वर्तमान में दिया जा रहा है, साथ ही इन अंडो का वितरण भी स्वैच्छिक होगा यानि कोई बच्चा इसका सेवन नही करना चाहेगा तो उसे अंडे की बजाय अन्य पोषण आहार का लाभ दिया जाएगा। 
आज रतलाम आए जिला प्रभारी मंञी भी बोल गए है कि- जिसे अंडा खाना है वो खाए और जिसे ना खाना हो वो नही खाए मगर अंडो पर राजनीति न करें। हालात ये है कि शाम सात बजे गले में डली माला शाम सात बजे बाद घर की खूंटी पर टांगने और माथे पर लगा तिलक रात आठ बजे बाद पोछ कर नरभक्षी बनने वाले लोग अंडो का वितरण कर रहे हैं। मुद्दे का अंगड़ा पिछड़ा नही देखना और विरोध शुरु कर दो क्यूकि अब पांच साल इसी तरह झाँकी भी जमाना है। कुपोषित बच्चों की किस तरह से लाभ होगा ये चिकित्सीय सलाह पर सरकार कदम उठाती है। कोई शराब का विरोध नही करता है। क्यूकि सरकारे नही कहती है कि लोग शराब का सेवन करे, ऐसे में जिसको पीना हो वो पी ले और जिसको नही पीना हो वो अपनी राधा को याद करे। आजकल ये करे तो रासलीला और वो करे तो कैरेक्टर ढीला का जमाना है। 
इंसानी गोस्त को चाटने, नौचने वाले दल के जिम्मेदार भविष्य वक्ता भावी पीढ़ी को नरभक्षी बना रहे हैं। जब सरकार कह रही है कि जिसको खाना हो वो खाए तो विरोध खड़ा करना सिर्फ राजनीति है। गुड़ खाकर गुलगुलो से परहेज करना बुद्धिमानी नही होती है। बहरहाल अभी गांव बसा नही है और विरोधी पैदा हो चुके हैं। जब अंडा वितरण का सरकार टेंडर निकालेगी तो हो सकता है कि कोई विरोध करने वाला भी इस निविदा में शामिल हो जाए क्यूकि आजकल पार्टी से ज्यादा पैसा और व्यापार जरुरी है । 


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